गोपू भाई


हालाँकि मित्र की निन्दा करना पाप की श्रेणी में आता है फिर भी मानवीय हित को श्रेष्ठ मानकर मैं अपने मित्र गोपू भाई के बारे में बताता हूँ। गोपू भाई देखने में इतने भले और भोले लगते हैं कि आपको चिडि़याघर के पिंजड़ों में बन्द जानवरों की याद आ जायेगी।जिस तरह चिडि़याघर के खूँख्वार जानवर पिजड़े की सलाखों का लिहाज करते हुए मर्यादित व्यवहार करते हैं।उसी प्रकार गोपू भाई सामाजिक मर्यादाओं की सलाखों का लिहाज करते हुए संयमित आचरण करते हैं।उदाहरण के तौर पर गोपू भाई शास्त्रीय संगीत के गायन तथा वादन समारोहों में बतौर श्रोता अक्सर देखे जाते हैं लेकिन अन्दर ही अन्दर अपनी आत्मा पर अत्याचार करते हैं क्योंकि वास्तव में गोपू भाई को जुआ खेलना, घटिया फिल्मी गाने सुनना,फेरी वाले के गोलगप्पे खाना, गुलेल से चिडि़या मारना,चाय की दुकान पर बैठकर डींगे हाँकना साहित्य तथा संगीत की गोष्ठियों से अधिक प्रिय है।
एक दिन बाल कटवाने के लिए गोपू भाई सैलून में बैठे थे और आदत के अनुसार नाई को आदेश पर आदेश दिये जा रहे थे। पुलिस, कोर्ट, कचहरी,जेल इत्यादि का अगर चक्कर नहीं होता तो नाई यकीनन गोपू भाई की गर्दन पर उस्तरा रेत देता लेकिन नाई अपने भविष्य का ख्याल करके इस घटना को अंजाम नहीं दे सका।
गोपू भाई पैसे की कीमत समझते हैं इसीलिए दियासलाई की डिब्बी खरीदने के बाद तीलियाँ गिनकर ये तसल्ली कर लेते हैं कि डिब्बी पर तीलियों की जितनी संख्या मुद्रित है उतनी तीलियाँ वास्तव में उन्हें प्राप्त हुई हैं।झाड़ू खरीदते वक्त आँखों ही आँखों में प्रत्येक सीक की सेहत और सीकों की तादाद का सटीक अंदाजा लगा लेना गोपू भाई के लिए कोई मुश्किल काम नहीं।पान में इतने तरह का जर्दा डलवाते हैं कि पान बेचने वाले को आर्थिक नुकसान हो जाता है।
आचरण के मामले में गोपू भाई परिवर्तनशील प्राणी हैं । तरह तरह के लोगों के साथ तरह तरह का वर्ताव करने की क्रिया में वे चरम स्तर तक पारंगत हैं।सामथ्‍​र्यवान आदमी के सामने खीस निपोरते हुए इतना सिकुड़ जाते हैं कि कभी कभी लगता है कि अपने अस्तित्व को ही विलुप्त न कर बैठें।वरना छोटे मोटे लोगों के सामने हमेशा अपने वृह्द रूप में ही नजर आते हैं वृह्द रूप का मतलब उसी रूप के समरूप है जैसा कृष्ण भगवान नें अर्जुन को महाभारत के युद्ध में दिखाया था।
गोपू भाई बच्चों को अपने बारे में बताते हुए कहते हैं कि वे पढने में इतने अच्छे थे कि अध्यापक उन्हें रोज शाबाशी देते थे तथा परीक्षाफल के उपरान्त प्रधानाचार्य उन्हें पारितोषिक देकर सम्मानित करते थे।दरअस्ल हमारे जैसे उनके कुछ मित्र ही इस सत्य को जानते हैं कि गोपू भाई द्वारा अपने छात्र जीवन के बारे में सुनाये जाने वाले समस्त वृत्तांत सरासर असत्य हैं।सत्य कुछ इस प्रकार है कि जिसके अनुसार गोपू भाई अपने छात्र जीवन में अध्यापक द्वारा नियमित शारेरिक तथा मौखिक रूप से दण्डित किये जाते थे और परीक्षाफल के उपरान्त प्रधानाचार्य हर बार गोपू भाई के पिता जी को विद्यालय बुलाकर शिकायतों की फेहरिश्त सुपुर्द करते थे।
कल मैं गोपू भाई के घर गया तो वे अपने फटे हुए पैजामे का नाड़ा निकालकर नये पैजामे में लगा रहे थे। उन्होंने हमें यह भी बताया कि बिना नाड़े का पैजामा सिलवाने पर दर्जी दो रूपये कम लेता है।हम दोनो नें बैठकर अपने दफ्तर तथा शहर के लोगों के आचरण की समीक्षा की, मुहल्ले की स्त्रियों तथा बच्चों के बारे में बातें की,गोपू भाई ने मेरी तारीफ की और मैने गोपू भाई की तारीफ की उसके बाद हम दोनो पान की दुकान की तरफ चल पड़े।आपको मैं यह बताना चाहूँगा कि गोपू भाई के बारे में जैसे मेरे विचार हैं वैसे ही मेरे बारे में गोपू भाई के भी विचार हैं।हम दोनो में इतनी वैचारिक समानता है कि हमारी अखंड मित्रत्रा अनवरत दीर्घायु होती रहेगी इसमें कोई संशय नहीं ।