रात की परछाईयाँ समेंटने चलो

रात की परछाईयाँ, समेंटने चलो।
फैली हुयी तन्हाईयाँ, समेंटने चलो।।

पत्तों पे सोयी हुई है, नीम रोशनी।
चाँद की बीनाइयाँ, समेंटने चलो।।

रेत है या समन्दर की, बदगुमानी है।
आँख से गहराइयाँ, समेंटने चलो।।

जलते बुझते जुगनुँओं की कतार में।
अंधेरों की जेबाइयाँ, समेंटने चलो।

आज उसके कूचे,तन्हा चलो राकिम।
अपनी ही रूस्वाइयाँ, समेंटने चलो।।