इक दूसरे से क्यों हैं खफा आदमी के तौर

इक दूसरे से क्यों हैं खफा आदमी के तौर।
लगते नहीं हैं अच्छे किसी को किसी के तौर।।

जी करता है कि हाथों से आँखें समेट लूँ।
देखे नहीं जाते हैं मुझसे जिन्दगी के तौर।।

गरूर बडप्पन का दोस्तों को हो गया।
आ गये हैं तौर में अब बेरूखी के तौर।।

अपने चलन को देखना यहाँ गुनाह है।
खुद को छोड़ देखिये यहाँ सभी के तौर।।

है नाव धूप की मेरी दरिया है रेत का।
चलते हैं हम सराब में लेकर नदी के तौर।।

जेहन मुनाफाखोर है दिल बेईमान है।
खुदगर्ज आजकल हैं बहुत दोस्ती के तौर।।

लगती है आसान मौत ऐसे लोगों को।
देखे हैं जिन लोगों ने मुफलिसी के तौर।।