बहुत कुछ आप अपने को बताना भी जरुरी था

रिवाज-ए-रस्म-ए-तन्हाई निभाना भी जरुरी था
बहुत कुछ आप अपने को बताना भी जरुरी था

समझते हम भी उसको थे समझता वो भी हमको था
मगर इन्कार करने को बहाना भी जरुरी था

यकीनन काम आयेंगे पड़ेगा लौटना जब भी
निशाँ कुछ रुक के राहों में लगाना भी जरुरी था

नहीं मंजूर थी हमको हँसी झूठी कभी लेकिन
गम-ए-दिल को जमाने से छिपाना भी जरुरी था

हथेली जलने का था खौफ हर लम्हा मगर फिर भी
हवाओं से चरागों को बचाना भी जरुरी था

रहे कैसे मेरे रहते कोई इल्जाम आवारा
उसे तो आदतन सर मेरे आना भी जरुरी था

बराबर दोनों थी लाजिम गजल कहना या मजदूरी
कि राकि़म पेट की खातिर कमाना भी जरुरी था

किसी कीमत बिना नफरत सियासत हो नहीं सकती



किसी कीमत बिना नफरत सियासत हो नहीं सकती
हकीकत और कुछ हो तो हकीकत हो नहीं सकती

अता जो मौत करती है वही मोहलत जिन्दगी है
फितरतन मौत से वैसे मुरव्वत हो नहीं सकती

मुहब्बत है इमारत तो यकीं बुनियाद है इसकी
शिकायत और सुब्हे में मुहब्बत हो नहीं सकती

तंज बर्दाश्त करने की कहीं तो कोई हद्द होगी
कहा किसने खफा मेरी तबीयत हो नहीं सकती

बिसाती बैठे हैं आढत पे गुंजाईश न समझेंगे
वगरना कीमतों में कब रिआयत हो नहीं सकती

भरोसा तोड़ता है वो भरोसा जिस पे होता है
सिवा इसके एहतियातन नसीहत हो नहीं सकती

नहीं मोहताज होती है लफ्ज और हर्फ की राकि़म
अगर है तो मुहब्बत की इबारत हो नहीं सकती