रहता नहीं है कल कभी क्यों आज की तरह

रहता नहीं है कल कभी क्यों आज की तरह
वक्त क्यों बदलता है मिजाज की तरह

चेहरों पे डालता हूँ अकीदत भरी नजर
पढता हूँ सूरतों को मैं नमाज की तरह

लम्हा लम्हा उम्र का या कतरा कतरा पानी
क्या जिन्दगी है डूबते जहाज की तरह

रोटी की फिक्र भारी होती है बराबर
एकदम तुम्हारी फिक्र ए तख्तोताज की तरह

राकिम फिजूल करते हो तुम दुनिया की परवा
चलती है दुनिया आदतन रिवाज की तरह