क्या कहाँ वक्त के सिवा बदला


न जमीं न तो आसमाँ बदला
क्या कहाँ वक्त के सिवा बदला

उम्र नें सूरतों को बदला था
बेवजह हमने आईना बदला

आदती हमसफर थे साजिश के
हमने उकता के रास्ता बदला

कल तलक था शुकून बस्ती में
उनकी आमद नें मामला बदला

जिसने कोशिश की थाम ली उँगली
उसने तकदीर का लिखा बदला

एक तू ही नहीं हुआ हासिल
सिर मेरा कितने आस्ताँ बदला

मौत से ज्यादा बुरा था राकि़म
जिन्दगी नें था जब लिया बदला