खत्म हुई यूँ मेरी तलाश बारहा


खत्म हुई यूँ मेरी तलाश बारहा
आखिरश मिला वो मेरे पास बारहा

ले आई खींचकर के समन्दर तलक उसे
दरियाओं को डुबोती है यूँ प्यास बारहा

चेहरों पे वक्त सिलवटों की शक्ल में दिखा
सच होता नहीं देखा हुआ काश बारहा

होता हूँ नुमायाँ मैं अब फरेब ओढकर
सर पीटते हैं अब नजरशनाश बारहा


आम आदमी है आम हो के परीशां
फिरते हैं यूँ इतराते हुए खास बारहा

जीते हैं जिन्दगी को हम रिवाज की तरह
आती नहीं है वरना हमें रास बारहा

अपने वजूद को जो कभी देखा गौर से
राकि़म जी नागहाँ हुए उदास बारहा